अंशुल त्यागी
गुरु—शिष्य का रिश्ता बड़ा पवित्र और अनूठा होता है। शिष्य जहां गुरु का दर्शन और आशीर्वाद पाकर कृतार्थ होता है, वहीं शिष्य के मर्यादित व्यवहार और स्नेह के वशीभूत गुरु भी माने जाते हैं। यही वजह है कि शिष्य अगर दुखी हो तो गुरु भी अपने कष्टों की भी परवाह नहीं करते हैं और शिष्य को दर्शन लाभ कराने के लिए कुछ भी कर गुजर जाते हैं।
ऐसा ही कुछ अनूठा उस वक्त देखने को मिला, जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नवीन इतिहास का सृजन करते हुए तेरापंथ की आचार्य परम्परा में एक दिन में सर्वाधिक 47 किलोमीटर का उग्र विहार किया। शाम लगभग छह बजे आचार्यश्री महाश्रमणजी दिल्ली के श्रीबालाजी एक्शन अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ ले रहीं शासनमाता साध्वीप्रमुखाजी को दर्शन दिए। खास बात यह कि आचार्यश्री महाश्रमणजी जी के दिल्ली आगमन के दौरान हरियाणा के झज्जर के पास स्व. मूलचंद मालू के सुपुत्र एवं कुबेर ग्रुप के निदेशक विकास मालू अपने परिवार के सदस्यों के साथ आचार्यश्री का दर्शन—आशीर्वाद पाकर अपने जीवन को धन्य किया।