09
Mar
अंशुल त्यागी गुरु—शिष्य का रिश्ता बड़ा पवित्र और अनूठा होता है। शिष्य जहां गुरु का दर्शन और आशीर्वाद पाकर कृतार्थ होता है, वहीं शिष्य के मर्यादित व्यवहार और स्नेह के वशीभूत गुरु भी माने जाते हैं। यही वजह है कि शिष्य अगर दुखी हो तो गुरु भी अपने कष्टों की भी परवाह नहीं करते हैं और शिष्य को दर्शन लाभ कराने के लिए कुछ भी कर गुजर जाते हैं। विहार के दौरान ली गई तस्वीर ऐसा ही कुछ अनूठा उस वक्त देखने को मिला, जब जैन श्वेताम्बर तेरापंथ धर्मसंघ के ग्यारहवें अनुशास्ता आचार्यश्री महाश्रमणजी ने नवीन इतिहास का सृजन करते…