नेहा राठौर
ये कहानी एक ऐसे सैनिक की है जिसने मरने के बाद भी अपने देश की रक्षा का वचन निभाया। सबने भूतो की कहानियां तो कई सुनी होंगी लेकिन आज की पीढ़ी उन पर विश्वाश नहीं करती। वहीं कई लोग है जो आज भी इस पर यकीन करते हैं। ऐसी ही कहानी बाबा हरभजन सिंह की है। एक जवान जिसे मरने के बाद संत की उपाधि मिली और लोग उसे आज भी भगवान की तरह पूजते हैं।
बाबा हरभजन सिंह को भारतीय सेना द्वारा संत की उपाधि दी गई। सिंह को सेना के जवान “नाथुला के नायक” के रूप में याद करते हैं। कप्तान हरभजन सिंह भारतीय सेना के एक वीर सैनिक थे। सिंह का जन्म 1946, पंजाब के सरगना (पाकिस्तान) में हुआ था। वो अमृतसर में एक सैनिक के रूप में सेना में भर्ती हुए और पंजाब रेजिमेंट में शामिल हो गए। लेकिन कुछ साल बाद ही यानी 1968 में पूर्वी सिक्किम, भारत में नाथुला के पास शहीद हो गए। सिंह के मित्र ने बताया कि जब वो दूर स्थित चौकी पर खच्चरों में आपूर्ति लेकर जा रहे थे। तब ही वो ग्लेशियर में डूब गए।
तीन दिनों तक सिंह की लाश को ढूंढा गया लेकिन लाश नहीं मिली। चौथे दिन उन्होंने अपने एक सहयोगी प्रीतम सिंह को उनके सपने में जा कर अपने शव के बारे में बताया। अगले दिन चार-पांच जवान सिंह की बताई हुई जगह पर गये और उन्हें उसी जगह सिंह का शव मिला। पहले तो कोई भी प्रीतम सिंह की बात पर यकीन नहीं कर रहा था पर धीरे – धीरे सब को विश्वास होने लगा। क्योकि सिंह के मरने के बाद से कुछ अजीब सी घटनाएं होने लगी, जैसे जब भी कोई जवान ड्यूटी पर सो जाता तो उसे अपने गाल पर एक ज़ोर का थापड़ महसूस होता। इतना ही नहीं चीन की तरफ से होने वाले हमलों के बारे में पहले से ही किसी न किसी के सपने में वह जाकर बता देते थे और वो जानकारी सही साबित होती थी।
चीनी सैनिकों ने भी कई बार एक भारतीय सैनिक द्वारा सरहद पर रात को सफ़ेद घोड़े पर गश्त लगाये जाने की शिकायत की थी। लेकिन जब चीनी सैनिक को पता चला की गश्त लगाने वाला कोई इंसान नहीं एक आत्मा है तो वो भी दंग रह गए। 22 साल की उम्र में हरभजन सिंह की मृत्यु कथा और उनका देशभक्ति की भावना भारतीय सेना, उनके गांव के लोगों और सिमा पार चीनी आर्मी के बीच लोकप्रिय लोककथा और धर्मिक श्रद्धा का विषय बन गई। उनकी मृत्यु के बाद भारत-चीन के बीच होने वाली हर छोटी- बड़ी मीटिंग में उनके लिए एक कुर्सी रखी जाती जिस पर उनकी तस्वीर होती थी।
मरने के बाद भी उनको एक महीने की छुट्टी दी जाती थी और उस महीने में सरहद की सुरक्षा और कड़ी कर दी जाती। छुट्टी में कुछ सैनिक सिंह का सामान उनके गांव छोड़ने जाते थे जहाँ पूरा गांव उनका सुवागत करता और छुट्टी ख़तम होते ही कुछ सैनिक उन्हें लेने वापस उनके गांव भी जाते थे। 2006 में वो सेवानिवृत(रिटायर) हो गए इसके बाद उनकी पेंशन उनके घर भेजी जाने लगी। कुछ समय बाद नाथुला में उनका एक मंदिर बनाया गया। जिसे बाबा हरभजन सिंह के नाम से जाना जाता है मंदिर में उनकी वर्दी और जूतों को रखा गया और उनके आराम के लिए एक कमरा भी बनाया गया। भारतीय सेना उन्हें बहुत मानती है और लोग भी अपनी मनोकामना लेकर वहां जाते है वहां की मान्याता है कि अगर एक पानी की बोतल मंदिर में छोड़ दी जाये और दो दिन बाद वाही पानी मंदिर से लेकर किसी बीमार इंसान को पिलाया जाये तो उसकी सारी बीमारियां दूर हो जाती हैं इसी कारण मंदिर में पानी की बोतलों का ढेर लगा रहता है। कप्तान हरभजन सिंह देशभक्ति की एक मिसाल है उन्होंने साबित कर दिया की मौत की दिवार भी देश भक्ति के जज़्बे को रोक नहीं सकती।
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