नेहा राठौर
जम्मू (Jammu) में अब उत्तर और दक्षिण दोनों की एक साझा संस्कृति का मिलन दिखाई देगा। बता दें कि शिवालिक पहाड़ियों (Shivalik Hills) पर सिद्दड़ा गांव में स्थित तिरुपति बालाजी (Tirupati Balaji) के नए धाम में श्रद्धालु पहुंचने लगे हैं। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम बोर्ड द्वारा इस मंदिर का निर्माण कराया गया है। यहां तिरुमाला तिरुपति बालाजी मंदिर में जो परंपराएं निभाई जाती हैं उन्हीं परंपराओं का पालन किया जाएगा।

उत्तर भारत में तिरुपति बालाजी का यह पहला भव्य मंदिर है, यह मंदिर सिद्दड़ा क्षेत्र के मजीन गांव में करीब 62 एकड़ जमीन पर बनाया गया है। इसका निर्माण करीब 32 करोड़ की लागत से किया गया है। मंदिर के लिए जम्मू प्रशासन की ओर से जमीन उपलब्ध कराई गई है।

मंदिर में भगवान वेंकटेश्वर स्वामी (lord venkateswara swamy) की दो मूर्तियां स्थापित की गई हैं, इनमें से एक प्रतिमा 8 फुट और दूसरी छह फुट की बताई जा रही है। बता दें कि मंदिर के गर्भगृह में करीब आठ फुट की प्रतिमा प्रतिष्ठापित किया गया है, जबकि दूसरी प्रतिमा को बाहर की ओर लगाया गया है। इन दोनों प्रतिमाओं को आंध्रप्रदेश (Andhra Pradesh) के गुंटूर से लाया गया है। जानकारी के लिए बता दें कि इस प्रतिमाओं को प्रतिस्थापित करने के लिए करीब 5 दिन तक अनुष्ठान चलाया गया था, जिसे पूरा कराने के लिए 45 पुजारियों को तिरुमाला से बुलाया गया था।

मंदिर निर्माण में कर्नाटक (Karnataka) और आंध्रप्रदेश के ग्रेनाइट पत्थर (granite stone) का इस्तेमाल किया गया है। इन पत्थरों को दक्षिण भारतीय शैली (South Indian Style) में ढालने के लिए दक्षिण से ही 45 कारीगरों की एक टीम को बुलाया गया था। खास बात तो यह है कि जम्मू के बालाजी धाम में, तिरुपति तिरुमाला बालाजी मंदिर की सभी परंपराओं को निभाया जाएगा।

देश-दुनिया में तिरुमाला तिरुपति बालाजी मंदिर की पहचान है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण करीब 380 ई. में शुरू किया गया था, उस वक्त साउथ इंडिया के कई राजाओं ने इस शुभ कार्य में सहयोग किया था। ऐसी भी मान्यता है कि यहां प्रतिष्ठापित भगवान वेंकटेश्वर की प्रतिमा को कहीं से लाया नहीं गया है बल्कि ये जमीन से प्रकट हुई थी। यह मंदिर सप्तगिरि की सातवीं पहाड़ी पर स्थित है, जिन्हें शेषनाग के फन की तरह ही माना जाता है।