जीवनशैली

81 किलो का भाला, 72 किलो का कवच.. महाराणा प्रताप ने इस तरह लड़ा था हल्दीघाटी का युद्ध

नेहा राठौर

आज मेवाड़ के महान हिंदू शासक महाराणा प्रताप (Maharana Pratap) की जयंती है। उनका जन्म 9 मई साल 1540 को हुआ था। महाराणा प्रताप सोलहवीं शताब्दी के राजपूत शासकों में ऐसे शासक थे, जिन्होंने अकबर को बराबर की टक्कर दी। तो आइए उनके बारे में कुछ दिलचस्प बातें जानते हैं…

  • महाराणा प्रताप का जन्म राजस्थान (Rajasthan) के कुम्भलगढ़ में हुआ था। आज भी महाराणा प्रताप और अकबर के बीच लड़ा गया हल्दीघाटी का युद्ध (Battle of Haldighati) काफी चर्चित है क्योंकि ये युद्ध कोई आम युद्ध नहीं था, बल्कि महाभारत की तरह ही ये एक विनाशकारी युद्ध था। आपको बता दें कि यह जंग 18 जून साल 1576 में सिर्फ चार घंटों तक चली थी। इन कुछ घंटों में लोगों ने बहुत कुछ खोया।
  • आपको बता दें कि इस युद्ध में अकबर (Akbar) का सामना करने के लिए महाराणा प्रताप के पास केवल 20000 सैनिक थे। वहीं, अकबर के पास 85000 सैनिक थे। इसके बावजूद महाराणा युद्ध ने हार नहीं मानी और स्वतंत्रता के लिए लगातार लड़ते रहे।
  • बताया जाता है कि इस युद्ध में महाराणा प्रताप के भाले का वजन करीब 81 किलो था। वहीं, उन्होंने जो कवच पहना हुआ था उसका वजन 72 किलो था। उन्होंने इस दौरान अपने पास दो तलवारें भी रखी थीं, जिनका वजन 208 किलो था।
  • सबसे महत्वपूर्ण महाराणा प्रताप का चेतक, हम उसे कैसे भूल सकते हैं, ये उनका खुद का घोड़ा था जो उन्हें सबसे ज्यादा प्रिय था। उन्होंने इसका नाम चेतक रखा था। बता दें कि उनका घोड़ा कोई आम घोड़ा नहीं था वो काफी बहादुर था। संकट की स्थिति में उसने महाराणा प्रताप का जमकर साथ दिया। जीवन की आखरी सांस तक वह महाराणा प्रताप के साथ ही था। यह कहना गलत नहीं होगा कि युद्ध में महाराणा की जान बचाने वाला चेतक ही था। जो घायल होने के बावजूद उन्हें समय पर युद्ध क्षेत्र से बाहर ले गया।

हल्दीघाटी युद्ध क्या है


हल्दीघाटी युद्ध मध्यकालीन इतिहास का सबसे चर्चित जंगों में से है, जिसमें मेवाड़ के महाराणा प्रताप और अकबर की विशाल सेना का आमना-सामना हुआ था।

सिर्फ चार घंटे चला था युद्ध


ये युद्ध सिर्फ चार घंटे चला था, लेकिन आज तक इस बात का पता नहीं चला कि इस युद्ध में अकबर की जीत हुई थी या महाराणा प्रताप की? इस मुद्दे को लेकर कई अलग-अलग तथ्य और रिसर्च भी सामने आए हैं। कहा जाता है कि इस जंग में ना कोई हारा और ना ही कोई जीता। इस युद्ध का कुछ भी निष्कर्ष निकलकर सामने नहीं आया था।

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