DME मीडिया स्कूल ने की वैश्विक पर्यावरण शिक्षण-प्रशिक्षण गतिविधियों पर अद्वितीय अनुसंधान सम्मेलन की मेज़बानी

अंशुल त्यागी, डीएमई (DME) मीडिया स्कूल ने ‘वैश्विक पर्यावरण शिक्षण, प्रशिक्षण और शिक्षण गतिविधियों’ पर एक अद्वितीय एक-दिवसीय शोध सम्मेलन की मेजबानी की। इस एक-दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन 31 अक्टूबर, 2023 को डीएमई के स्टूडियो-62 में किया गया। सम्मेलन का आयोजन RELTTAW (रिसर्च ऑन लर्निंग: ट्रेनिंग एण्ड टीचिंग ऐक्टिविटीज वर्ल्डवाइड) द्वारा VEIU (विज़न फ़ॉर एक्सीलेंस इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी), TMP ग्रुप, फ़ाइड्स, डेनमार्क, ADI अफ़्रीका, इको और GMEC (ग्लोबल मीडिया एजुकेशन काउंसिल), भारत के सहयोग से हुआ।

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इस अद्वितीय सत्र के उद्घाटन समारोह में डीएमई के डायरेक्टर डॉ रविकांत स्वामी; जीएमईसी के उपाध्यक्ष श्री उज्जवल चौधरी और आयोजन समिति के सदस्य, ReLTTAW; डीएमई मीडिया स्कूल के डीन प्रोफेसर (डॉ) अंबरीश सक्सेना; डीएमई मीडिया स्कूल की हेड डॉ सुस्मिता बाला और ReLTTAW के रोमानियाई यूरोपीय परियोजना की समन्वयक की संस्थापक सुश्री कोरिना सुजडिया ने शामिल होकर कार्यक्रम की शिभ बढाई।

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सम्मेलन के प्रतिभागियों में शिक्षक, शोधकर्ता और प्रशिक्षकों का एक प्रतिनिधिमंडल शामिल था, जिसमें यूरोप, एशिया और अफ्रीका के 30 से अधिक विद्वान शामिल हुए। सभी प्रतिभागी अलग-अलग देशों से अपनी आए थे जिसमें इटली, डेनमार्क, रोमानिया, रूस, कजाकिस्तान, जापान, मलेशिया, श्रीलंका, जॉर्डन, नेपाल, बांग्लादेश, भारत, कांगो, यमन और सोमालिया शामिल है। सत्र की शुरुआत डीएमई मीडिया स्कूल की एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. मनस्वी माहेश्वरी द्वारा की गई। जिसमें उन्होंने डीएमई परिसर में अवलोकन और परिवर्तन लाने के लिए आयोजित इस सम्मेलन के महत्व पर प्रकाश डाला। डॉ. सुस्मिता बाला ने डीएमई मीडिया स्कूल की तरफ से सभी विद्वानों और अतिथियों का स्वागत किया और सम्मेलन की महत्ता बताई। मुद्दे की गंभीरता पर जोर देते हुए डॉ. रविकांत स्वामी ने अपनी चिंता प्रकट की। विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर जलवायु परिवर्तन की गंभीरता को मापते हुए उन्होंने कहा, “अपशिष्ट डंपिंग और प्रदूषण जैसे जलवायु परिवर्तन के मुद्दे गरीब देशों की तुलना में विकासशील देशों में ज्यादा हैं और यह चिंतनीय है”।

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डॉ अंबरीश सक्सेना ने सभी अतिथियों और प्रतिभागियों को जलवायु परिवर्तन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए जीएमईसी और डीएमई मीडिया स्कूल द्वारा की गई विभिन्न पहलों के बारे में जानकारी दी। इसी दौरान सुश्री कोरिना ने इस बात पर जोर दिया कि बदलाव केवल शिक्षाविदों, निजी क्षेत्र और स्थानीय लोगों के सहयोग से ही लाया जा सकता है। वहीं, उज्ज्वल चौधरी ने जलवायु परिवर्तन के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की। उन्होंने न केवल सम्पूर्ण मानव जीवन के लिए बल्कि भारत में सबसे लोकप्रिय पर्यटन केंद्रों जैसे कि ताजमहल, जल संसाधन जैसे कि गंगा-यमुना नदियों और खराब हवा की हवा की गुणवत्ता में सांस लेने को मजबूर लोगों के प्रति भी अपनी संवेदना व्यक्त की।
उद्घाटन सत्र के बाद प्रतिनिधियों द्वारा पेपर प्रस्तुति सत्र भी आयोजित किया गया। प्रस्तुति सत्र की अध्यक्षता डॉ सुस्मिता बाला और डॉ प्रमोद कु. पांडे, अससिस्टेंट प्रोफेसर, डीएमई स्कूल ने की। पेपर प्रस्तुति के विषय ‘आवर प्लेनेट अर्थ एण्ड इट्स डिजर्टिफिकेशन- कॉजेस & इफेक्ट्स’ में नौ विभिन्न देशों के प्रतिभागियों की कुल 14 प्रस्तुतियाँ हुई।

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पेपर प्रस्तुतिकरण के विभिन्न विषयों में भारत, नेपाल और दुनिया के अन्य हिस्सों में बढ़ता मरुस्थलीकरण, जॉर्डन में शिक्षण और सीखने पर प्रौद्योगिकी और डिजिटलीकरण का महत्व और परिदृश्य शामिल थे। कजाकिस्तान और जापान में ऐतिहासिक पर्यटन और शहरीकरण, यमन में सकारात्मक जलवायु परिवर्तन लाने और जैव विविधता को संरक्षित करने की पहल, श्रीलंका पर जलवायु परिवर्तन का नकारात्मक प्रभाव आदि जैसे विषयों की प्रस्तुति से अन्य प्रतिभागियों को वैश्विक परदृश्य को देखने का एक नया मौका मिला। पेपर प्रस्तुति सत्र के बाद एक पैनल चर्चा-सत्र भी हुआ जिसमें डॉ. अंबरीश सक्सेना, श्री उज्जवल चौधरी, सुश्री कोरिना सुजदिया और अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ सॉवरेन नेशंस के प्रोफेसर डॉ. रियो ताकाहाशी पैनलिस्ट के रूप में शामिल हुए। पैनल चर्चा का विषय ‘विभिन्न देशों में मीडिया और जलवायु परिवर्तन’ था। चर्चा के दौरान, पैनलिस्टों ने न केवल विभिन्न जलवायु मुद्दों के बारे में जागरूकता लाने में बल्कि समाचार, मनोरंजन और यहां तक कि फिल्मों जैसी विभिन्न प्रकार की मीडिया सामग्री के संपर्क में आने वाले लोगों के व्यवहार को बदलने में भी मीडिया के महत्व को सामने रखा।

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हालाँकि, प्रोफेसर उज्ज्वल चौधरी ने इस तथ्य पर अफसोस जताया कि जलवायु परिवर्तन पर बहुत अधिक फिल्में नहीं बनी हैं। भारतीय पत्रकारिता द्वारा इसे नजरंदाज करने की बात कहते हुए उन्होंने कहा, “भारतीय पत्रकारिता में पर्यावरण कवरेज के लिए कोई जगह नहीं है और इसमें सिर्फ राजनीतिक मुद्दो का बोलबाला है।” उन्होंने मीडिया, शिक्षकों, स्थानीय आबादी और यहां तक कि निजी क्षेत्र के सहयोग से नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू करने की आवश्यकता पर भी जोर दिया। चर्चा-सत्र के दौरान, पैनलिस्ट्स से बातचीत करते हुए प्रतिनिधियों ने वर्षा-जल संचयन, व्यवहार परिवर्तन के लिए छोटे कदमों की आवश्यकता, संरक्षण की आवश्यकता और इसे जरूरतमंदों के साथ साझा करने जैसे सुझाव दिए। चर्चा के अंत में प्रो. उज्ज्वल चौधरी ने सभी प्रतिनिधियों को उनकी टिप्पणियों और सुझावों के लिए धन्यवाद दिया।
चर्चा-सत्र के बाद, डॉ. प्रमोद कुमार पांडे ने सत्र के निष्कर्ष के रूप में उभरते बिंदुओं को संक्षेप में प्रस्तुत किया और सभी प्रतिनिधियों को उनके योगदान के लिए सराहना की। डॉ. अंबरीश सक्सेना ने अपने समापन भाषण में सत्र को सफल बनाने के लिए सभी प्रतिनिधिमंडलों को और सुश्री कोरिना को सभी प्रतिनिधिमंडलों को एक मंच पर लाने के लिए धन्यवाद दिया। इस दौरान प्रो. सक्सेना ने RELTTAW ग्रुप को आश्वासन दिया कि वह भविष्य में पर्यावरण की सुरक्षा, संरक्षण और जागरूकता लाने के उनके नेक काम में RELTTAW का हमेशा समर्थन करेंगे।

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सत्र का समापन डॉ. मनस्वी माहेश्वरी द्वारा दिए गए धन्यवाद प्रस्ताव के साथ हुआ। उन्होंने विभिन्न देशों से आए प्रतिभागियों और विद्वानों के अलावा डीएमई मीडिया स्कूल के डीन डॉ अंबरीश सक्सेना, डीएमई मीडिया स्कूल की हेड डॉ सुस्मिता बाला, डॉ प्रमोद कु. पांडे, डॉ इरम रिज़वी, डॉ यामिनी खुल्लर, सुश्री रितिका बोरा, श्री विशाल सहाय और श्री माधव शर्मा के अलावा सभी छात्रों जिन्होंने इस कार्यक्रम को सफल बनाने में योगदान दिया को भी धन्यवाद किया। अंत में, सभी प्रतिनिधियों, सदस्यों और छात्रों को प्रमाण पत्र देकर नवाजा गया।

By Quick News

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